Posted on 24 Mar, 2019 07:40 pm

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हिंदी फिल्म

बॉलीवुड में आजकल नई कहानियों और कंटेंट को बेहद सराहा जा रहा है. हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म "उमाकांत पांडेय पुरुष या.....?" का रेस्पोंस भी बेहद अच्छा रहा है. इस मूवी में उमाकांत पांडेय के टाइटल रोल में अजीत कुमार के अभिनय को काफी सराहा गया है जिससे वह बेहद उत्साहित हैं. अजीत कुमार कहते हैं ''फिल्म को बहुत अच्छा रेस्पोंस मिला है. हालाँकि बॉलीवुड में जब भी कोई नया प्रोडक्ट नए एक्टर्स के साथ आता है तो बड़ा मुश्किल होता है उसे सामने लाना. लेकिन एक सोशल मैसेज के साथ इस फिल्म को हम सामने ला सके और दर्शक भी उस कंटेंट से कनेक्ट कर पाए यह हम सब के लिए बड़ी उपलब्धि है. ऑडियंस के साथ भी मैंने फिल्म देखी और मुझे ख़ुशी है कि दर्शकों ने इसे बेहद पसंद किया. कॉमेडी सीन पर लोग हंस रहे थे और संदेश देने वाले सीन को भी वे समझ रहे थे.''

अजीत कुमार आगे कहते हैं ''उमाकांत पाण्डेय कैसे एक शक की वजह से अपनी जिंदगी को नर्क बना देता है, यही इस फिल्म का सार है. आज भी हमारे समाज में सेक्स के ऊपर खुल कर लोग बातें नहीं करते, जिसकी वजह से कई परेशानियाँ भी होती हैं. जब क्लाइमेक्स में समस्याओं का समाधान दिखाया गया तो लोग उससे जुड़ सके. एक फॅमिली ने पिक्चर देखकर कहा कि इसका कंटेंट ऐसा है कि इस फिल्म को स्कुल और कॉलेज में दिखाया जाना चाहिए.''

दरअसल यह फ़िल्म सेक्स और उससे सम्बंधित मामलों के बारे में समाज मे बात न करने के बारे में है। अजीत कुमार की पहली फिल्म है. हालाँकि वह जैसे रियल लाइफ में हैं, उसके बिलकुल अपोजिट किरदार निभाया है. लेकिन चूँकि वो थिएटर से बहुत समय से जुड़े हैं, इसलिए ही इतने अलग और  मुश्किल किरदार को जीना उनके लिए संभव हो पाया . और लोगों ने उनके लुक को भी खूब पसद किया.

उमाकांत पांडेय का किरदार सिरियस होने के बावजूद भी ऑडियंस को बहुत हंसाता है, असल में अजीत कुमार इसी को संभव कर पाना एक एक्टर के तौर पर अपनी असली जीत मानते हैं. रियल लाइफ घटनाओं को उठाकर इसमें ढाला गया है. मिडिल क्लास के लोगों से यह किरदार सीधा कनेक्ट कर रहा है.

अजीत कुमार के एक्टर बनने की जर्नी भी बड़ी फ़िल्मी रही है. दिल्ली में वर्षों थिएटर करते रहे अजीत २००४ में पहली बार मुंबई एक्टर बनने आए थे.  तीन चार महीने मुंबई में रहे लेकिन तब तक जो पैसे घर से लेकर आये थे, वे ख़त्म हो गए. तब उन्हें समझ में आया कि उन्हें कुछ रूपए कमाने होंगे तभी वह अपना शौक पूरा कर पायेंगे. २००४ में ही वह वापस दिल्ली चले गए, फिर जॉब की. ड्रामे किये और २००८ में एक बार फिर मुंबई आये और रंग शारदा जैसे मुंबई के कई बड़े हाल में शोज़ किये. लेकिन २००९ में फिर दिल्ली चले गए, फिर नौकरी की और २०१० में फिर मुंबई आये और फिर लगातार २०१२ तक यहाँ रहे.

इसके बाद दिल्ली में ही अपने थिएटर की टीम के साथ इस फिल्म को बनाने का फैसला किया.फिल्म "उमाकांत पांडेय पुरुष या.....?" ने काफी समय लिया परदे तक पहुँचने में, पर कहते हैं न कि बड़े कारनामे धीरे-धीरे ही होते हैं. अजीत कुमार कुछ और नए प्रोजेक्टस की तैयारी में लग गए हैं. आशा करते हैं कि जल्द ही कुछ नया और कमाल देखने को मिलेगा.