Posted on 14 Nov, 2019 08:00 pm

Likes - 1 861


फिल्म समीक्षा: एक बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म है 'झलकी'

फिल्म समीक्षा: 'झलकी', निर्देशक ब्रह्मानंद सिंह और तन्वी जैन, कलाकार : बोमन ईरानी, तनिष्ठा चटर्जी, दिव्या दत्ता, संजय सूरी, आरती झा, गोरक्ष सकपाल, निर्माता ब्रह्मानंद एस सिंह, आनंद चव्हाण, अवधि 104 मिनट, सेंसर : युए, रेटिंग्स: 4 स्टार्स.

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बाल मजदूरी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी की जिंदगी से प्रेरित होकर ब्रह्मानंद सिंह और तन्वी जैन ने एक बेहतरीन सिनेमा बनाया है 'झलकी'. कालीन की फैक्ट्री में काम कराने के लिए बच्चों की तस्करी पर दिल दहला देने वाली यह फिल्म जागरुक करती है. मिर्ज़ापुर में कालीन की बुनाई में बाल तस्करी का नेक्सस बड़ा और शक्तिशाली है। ग्रामीण इलाकों में मानव तस्कर गरीब बच्चों को शहर में अच्छी नौकरी का लालच देकर उन्हें मॉडर्न जमाने की बंधुआ मजदूरी या गुलामी के दलदल में धकेल देते हैं.

झलकी फिल्म 9 साल की ऐसी बच्ची पर आधारित है जो अपने छोटे भाई की तलाश में दर-दर भटकती है. लड़की के माता-पिता उसके नन्हे भाई को मज़बूरी में तस्कर को बेच देते हैं. पलक झपकते ही, झलकी के 7 साल के छोटे भाई की ज़िंदगी बदल जाती है और उसे हर कीमत पर खोजने के लिए झलकी अपने मिशन पर निकल जाती है। एक अथक गौरैया की लोक-कथा और अपने तेज दिमाग के साथ, झलकी अपने भाई को खोजने और उसे मुक्त कराने के लिए एक अथक यात्रा पर निकलती है। प्रकाश झा और ब्रह्मानंद सिंह की कहानी, अथक गौरैया की एक पुरानी लोककथा से जुड़ी हुई है. इस लोक कथा को एनीमेशन के माध्यम से जानबूझकर फिल्म में बताया गया है। झलकी की खोज लोक कथा के समानांतर चलती है। वह जो चाहती है उसे पाने के लिए उसे क्या कीमत चुकानी होगी? सच्ची घटनाओं से प्रेरित, मानव-तस्करी और बाल-श्रम की पृष्ठभूमि के साथ, फिल्म झलकी एक अमानवीय दुनिया में आशा, साहस, आत्म-विश्वास और दृढ़ता की एक असाधारण थ्रिलर बन जाती है, जिसे एक 9 वर्षीय लड़की की आँखों से देखा जाता है। आश्चर्यजनक दृश्यों और खूबसूरत साउंडट्रैक के साथ, फिल्म झल्की प्यार, रोमांच और साज़िश का एक शानदार ड्रामा है, जो आपको एक बार सोचने पर विवश कर देगी जिसे बेहद काव्यात्मक ढंग से पेश किया गया है.

बाल मजदूरी पर जागरुकता फैलाने के लिए यह फिल्म बेहद अहम है. इसमें ग्रामीण इलाकों का वह सच दिखाया गया है, जहां तस्कर गरीब और भोल भाले लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं. भारत के कुछ पिछड़े राज्य जैसे छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड से सबसे अधिक बच्चों की तस्करी सेक्स या बाल मजदूरी के लिए होती है. बोमन ईरानी ने कैलाश सत्यार्थी के रूप में बेहतरीन अभिनय किया है, जबकि तनिष्ठा चटर्जी ने जर्नलिस्ट प्रीति व्यास के रूप में इंसाफ किया है, दिव्या दत्ता सुनीता भारतीय के रोल में हैं जबकि संजय सूरी संजय भारतीय के रूप में हैं. लेकिन फिल्म तो आरती झा की है जिन्होंने "झलकी" के रूप में प्रभावित किया है. बच्ची के भाई बाबु के रोल में गोरक्ष सकपाल ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है. फिल्म में गोविंद नामदेव, जॉय सेनगुप्ता,  अखिलेन्द्र मिश्रा, बचन पचेहरा ने भी एक्टिंग से इम्प्रेस किया है.

डॉक्यूमेंट्री फिल्मे बनाने के लिए मशहूर ब्रह्मानंद एस सिंह और तन्वी जैन ने अपने काम से प्रभावित किया है. उन्होंने समाज को झिनझोडने वाली फिल्म झलकी बनाई है। कैलाश सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन और "सच्ची घटनाओं" से प्रेरित यह फिल्म सोचने पर मजबूर करती है. बाल दिवस पर रिलीज़ होने वाली यह फ़िल्म झलकी बहुत ज्यादा दिल दहला देने वाली है. ब्रह्मानंद सिंह और सह-निर्देशक तन्वी जैन ने यह दिखाने का प्रयास किया कि बाल मजदूरी और तस्करी की घटनाएं इतनी दूर नहीं हैं जितनी हम सोचते हैं। और इसे अपने आसपास से नजरअंदाज करके, हम अधिक नुकसान कर रहे हैं। बाल तस्करी के मामले की वास्तविकता को को दिखाना जरूरी है। यहां तक कि यौन शोषण का भी एक सीन फिल्म में दिखाया गया है।

झलकी के रूप में आरती झा ने फिल्म को पूरी तरह से संभाला है। वह और गोरक्षा सकपाल, जो बाबू की भूमिका में हैं, भाई-बहन के रूप में एक अद्भुत बंधन बनाते हैं। बोमन ईरानी द्वारा निभाया गया कैलाश सत्यार्थी का रोल बहुत ही इन्स्पायेरिंग है। ब्रह्मानंद सिंह और तन्वी जैन की सराहना की जानी चाहिए उनकी इस फिल्म के लिए, एक जटिल विषय को बखूबी हैंडल करने के लिए. सत्यार्थी फिल्म के अंत में दर्शकों से बात करते हुए दिखते हैं, और यह भी एक प्रभाव छोड़ देता है। झलकी एक बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म है और इसे देखा जाना चाहिए. रेटिंग चार स्टार्स.