Posted on 12 Dec, 2020 10:00 pm

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वेब सीरीज 'बीहड़ का बागी' की शूटिंग में मुझे कई बार चोट लगी थी: दिलीप आर्या

एमएक्स प्लेयर की नई वेब सीरीज 'बीहड़ का बागी' दर्शकों को बेहद पसंद आ रही है और दर्शकों द्वारा बुंदेलखंड के कुख्यात खूंखार डकैत 'ददुआ' के रोल में अभिनेता दिलीप आर्या के अभिनय की सराहना की जा रही है। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के एक छोटे से गाँव अमौली से आकर दिलीप ने बॉलीवुड में अपनी एक पहचान बनाई है. उनके पिता राजमिस्त्री का काम करते थे. ‘बीहड़ का बागी’में ददुआ डाकू का किरदार अदा करने वाले दिलीप आर्या भी कभी मजदूरी करके बेहद मामूली रकम कमाते थे लेकिन आज इस वेब सीरीज की वजह से जबरदस्त चर्चा में हैं. उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा है मगर इस वेब सीरिज की बेपनाह सफलता से लगता है कि उनके पास अब काफी काम आने वाला है. इस विशेष इंटरव्यू में दिलीप आर्या अपने जीवन से जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर कर रहे हैं.

वेब सीरिज 'बीहड़ का बागी' को आप कैसे डिस्क्राइब करेंगे?

देखिये यह वेब सीरीज यूपी के चर्चित ददुआ डाकू की जिदंगी से इंस्पायर्ड स्टोरी है. वह पुलिस की नजर में तो एक डाकू था लेकिन दरअसल वह गरीबों के लिए रोबिन हुड था. इस सीरिज को निर्देशक ने बहुत रिसर्च करने के बाद फिल्माया है. इस शोध में और अपने किरदार की तय्यारी के दौरान हमने यह महसूस किया था कि शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ की दरअसल गाँव में बहुत इज्जत है. आप यकीन नहीं करेंगे कि लोग उसकी पूजा करते थे. आज भी फतेहपुर में भव्य ददुआ मंदिर है. यह सीरिज बनाने से पहले निर्देशक ने ददुआ के बेटे से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी लिया था. निर्देशक ने ददुआ की लाइफ से इंपायर होकर काल्पनिक चीजों को जोड़ कर सीरिज बनाई है.

इस शो में शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ का रोल आपको कैसे मिला?

अच्छा सवाल पूछा आपने, यह वेब सीरिज में काम मिलना और वह भी टाइटल रोल मिलना अपने आप में एक अचीवमेंट है और यह रोल मिलने की भी एक कहानी है जो बड़ी दिलचस्प है. इस वेब सीरीज के निर्देशक रितम श्रीवास्तव 'रक्तांचल' जैसी वेब सीरीज का डायरेक्शन कर चुके हैं. मेरे संघर्ष के वक्त रितम और मैं एक साथ एक कमरे में रहते थे. मैं जब उनके साथ रहता था तो उन्हें कभी कोई कहानी सुनाता तो कभी कोई लतीफ़ा सुना कर, कभी कोई संवाद अदा कर के उन्हें इम्प्रेस करने की कोशिश करता था. फिर रितम को निर्देशक प्रकाश झा के साथ काम करने का अवसर मिल गया. रितम श्रीवास्तव निर्देशक प्रकाश झा के सहयोगी रहे। इन्होंने गंगाजल, सत्याग्रह, आरक्षण, राजनीति आदि फिल्मों में प्रकाश झा के साथ काम किया है। जब रितम अपनी वेब सीरीज बनाने लगे तो उन्हें मेरी याद आई. हालाँकि कई कलाकारों को उन्होंने ददुआ के किरदार के लिए बुलाया था लेकिन किसी से मामला तय नहीं हुआ. उन्होंने सोचा कि किसी नए कलाकार को ही इस रोल के लिए चुना जाए जिसकी कोई इमेज न हो और इस तरह अंततः उन्होंने मुझे ही इस रोल में लेकर सीरिज बनाने का फैसला किया. मैंने बचपन से ही डाकू ददुआ की काफी कहानियां सुनी थीं। जिससे मुझे सीरिज में अदाकारी करने में मदद मिली. स्थानीय होने की वजह से मेरी भाषा और हाव-भाव पर अच्छी पकड़ है, जिससे सीरिज में संवाद अदायगी काफी अच्छी हो सकी।

इस वेब सीरिज की शूटिंग का आपको कैसा अनुभव रहा है?

हम लोगों ने रियल लोकेशंस पे जाकर इस वेब सीरिज की शूटिंग की. आज यह वेब सीरीज रिलीज हो कर जबरदस्त हिट हो गई है. यह वेब सीरिज देखते समय आपको एहसास होगा कि वर्षों की मेहनत इस सीरिज को बनाने में लगी होगी। डकैतों की बागी ज़िन्दगी और उनके रहन-सहन के तरीके को मैंने बड़ी सच्चाई के साथ पेश किया है, जो बेहद मुश्किल और चैलेंजिंग था। इस सीरिज के सारे दृश्य रोमांच से भरे हैं। दुर्गम पहाडिय़ों और जंगल की लोकेशन इस सीरिज के विजुअल को बहुत प्रभावी बना देती है। चित्रकूट के रहने वाले शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ का लगभग तीन दशकों तक राज था। हम लोगों ने चित्रकूट और आस पास की रियल लोकेशंस पर ही इसे शूट किया. मुम्बई में इसका सेट लगा कर शूट करने के बजाय चित्रकूट की उन जगहों पर शूटिंग की गई, जहां कभी ददुआ रहा था। इसकी शूटिंग के दौरान मुझे कई बार चोट लगी, मैं जख्मी हुआ मगर मैंने अपनी पूरी एनर्जी इस रोल को निभाने में खर्च कर दी.

फिल्मो में  एक्टिंग करने का शौक आपको कैसे जागा?

फिल्मो में काम करने का शौक भी मुझे ऐसे जगा कि आप हैरान रह जाएंगे. मैं ने एक दिन एक न्यूज पेपर में नसीरउद्दीन शाह साहब का एक इंटरव्यू पढ़ा और दरअसल वही इंटरव्यू मुझे इंस्पायर कर गया. उस इंटरव्यू में उन्होंने बताया था नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा  (एनएसडी) में ऐक्टिंग की पढ़ाई होती है. बस मैंने वह अख़बार उठाया और एनएसडी दिल्ली पहुंच गया. उस समय मैंने 12वीं तक की ही पढ़ाई की थी. वहां मुझे ऐडमिशन तो नहीं मिला मगर वहीं मुझे लखनऊ के भारतेंदु नाट्य अकादमी (बीएनए) के बारे में जानकारी मिली. मैंने वहां 2005 में एडमिशन ले लिया.

हमने सुना है कि आपके पिता राजमिस्त्री थे, और आपने भी कभी मजदूरी की थी?

जी हाँ, मेरे पिता मिस्त्री थे. हमारी उम्र जब बहुत ही कम थी तो पिता जी का देहांत हो गया था. गरीबी और मज़बूरी के दिन आ गए थे. पिता जी वाला काम मेरे भाई भी करने लगे थे. घर की हालत देखकर मैं भी उनके साथ मजदूरी करने निकल जाता था भले ही मुझे आधी मजदूरी मिलती थी. मेरे भाई लोग तो अब भी मजदूर के रूप में काम करते हैं. मैं जब वो दिन याद करता हूँ तो मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं. खैर अब जबसे मेरी यह वेब सीरिज आई है तो गाँव में सब बहुत खुश हैं. मेरे पूरे गांव और मेरे इलाके में मेरी इस सीरिज की खूब चर्चा हो रही है.

इस वेब सीरिज की सफलता का श्रेय आप किसको देना चाहेंगे?

देखिये सबसे पहले तो फिल्म के निर्देशक रीतम श्रीवास्तव को क्रेडिट जाता है फिर आज बॉलीवुड में रियलिस्टिक कंटेंट का ट्रेंड चल पड़ा है। कई फिल्मों, वेब सीरिज में हिंसा, मार धाड़, गैंग्स, गोलीबारी, माफिया, डकैती जैसे विषय दिखाए गए हैं। बीहड़ का बागी भी एक ऐसी ही रियलिस्टिक सीरिज है, जिसमें समाज के कुछ कड़वे सच को प्रभावी ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है। यह सीरिज रियल घटनाओं से प्रेरित है और यूपी एवं एम पी में लगभग तीस साल तक बागी जीवन गुजारने वाले दस्यु ददुआ की ज़िन्दगी से इंस्पायर्ड है। ददुआ अपनी बहन और पिता की बेदर्दी से हत्या का बदला कैसे लेता है, सीरिज में यह प्रभावी ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है। लेकिन सीरिज में उसकी रॉबिनहुड जैसी इमेज को भी उभारने का प्रयास किया गया है। फिल्म में मेरा किरदार भले ही एक डाकू और एक बागी का है लेकिन कई बुराइयों के बावजूद उसमे कई अच्छाइयां भी हैं। वह निहत्ते पर गोली नहीं चलाता, औरतों लड़कियों की इज्जत पे हाथ नहीं डालता, शराब नहीं पीता। मुझे लगता है कि यह सारी बातें दर्शकों को पसंद आ रही हैं.

by Gaazi Moin