Posted on 29 Nov, 2019 10:00 pm

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प्यार के अंधे पहलू को बखूबी दर्शाती है वर्धन पूरी की फिल्म 'ये साली आशिकी'

फिल्म समीक्षा: 'ये साली आशिकी', डायरेक्टर: चिराग रूपरेल, कलाकार: वर्धन पुरी, शिवालिका ओबेरॉय, रुसलान मुमताज़, जेसी लीवर, रेटिंग्स 3 स्टार्स।

बॉलीवुड में अब घिसी पिटी कहानियों के बजाय फ्रेश और अंकनवेशनल स्टोरीज देखने को मिल रही हैं। इस हफ्ते रिलीज़ हुई फ़िल्म 'ये साली आशिकी' एक ऐसी ही उम्दा कहानी को बयां करती है, जिसमें नयापन है और जिसका नरेटिव स्टाइल दर्शकों को बांध कर रखता है। बॉलीवुड के नामी खलनायक अमरीश पुरी के पोते वर्धन पुरी ने बॉलीवुड में फिल्म 'ये साली आशिकी' से अपने एक्टिंग करियर की दमदार शुरुआत की है। फिल्म की लाजवाब कहानी पटकथा, बेहतरीन निर्देशन, प्रभावी अभिनय, सीन एवं शॉट्स को ऊंचाइयां प्रदान करता बैकग्राउंड म्यूज़िक और सस्पेंस थ्रिल ऑडिएंस पर अपना असर छोड़ने के लिए काफी है।

कहानी: शिमला के होटल मैनेजमेंट कॉलेज में साहिल (वर्धन पुरी) और मीति (शिवालिका ओबेरॉय) मिलते हैं, यहां बेहद मासूम मीती को साहिल पहली नजर में ही अपना दिल दे देता है। कुछ वक्त के बाद मीति भी साहिल से अपने प्यार का इज़हार कर देती है। मगर इनका प्यार कितना मासूम और कितना सच्चा होता है या नहीं होता है, यही इसका प्लॉट है। "ये साली आशिकी" मोहब्ब्त का एक दूसरा पहलू दर्शाती है, जो बॉलीवुड की दूसरी मूवीज से बहुत डिफरेंट है। फिल्म के प्लॉट और इसके अनोखे कांसेप्ट के लिए फिल्म के लेखक निर्देशक की तारीफ होनी चाहिए।

फिल्म की स्टोरी कॉलेज लाईफ से गुजरती हुई लव, जुनून, घृणा, धोखा, पागलपन और बदले की भावना तक पहुंच जाती है। मीति के प्यार में साहिल पागल जैसा हो जाता है। हालात उसे पागलखाने तक पहुंचा देते हैं। यहां से साहिल का एक अलग रूप सामने आता है। फिल्म में काफी टर्न और ट्विस्ट हैं और इसका क्लाइमेक्स आपको चौंका देता है। फर्स्ट हाफ से ज़्यादा फिल्म के सेकंड हाफ में सस्पेंस हैं जो आपके दिल की धड़कन को बढ़ाता है।

वर्धन पुरी ने अपनी पहली फिल्म से अपनी अभिनय क्षमता को साबित कर दिखाया है। फिल्म में कॉलेज छात्र के रूप में वर्धन जहां बेहद शांत, सीधे और सॉफ्ट स्पोकेन दिखाई देते हैं। वहीं, कुछ सीन्स में उनका जुनून, पागलपन, नफरत, क्रोध, ग्रे शेड्स भी सामने आता है। और कमाल की बात है कि वर्धन ने कहीं भी यह एहसास नहीं होने दिया है कि यह उनकी पहली फिल्म है। वह किरदार के हर रंग में जान डाल देते हैं। वर्धन इस फिल्म के को रायटर भी हैं और इस क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखा दी है।

शिवालिका ओबेरॉय की भी यह पहली फिल्म है, उनके लिए भी यह एक चैलेंजिंग रोल था। फिल्म के शुरू में तो वह अपनी एक्टिंग और एक्सप्रेशन का प्रभाव नहीं छोड़ पाती मगर सेकंड हाफ में उन्होंने भी अपनी एक्टिंग दिखाई है। फिल्म किक में साजिद नाडियाडवाला की असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम कर चुकी शिवालिका ने फिल्म के अंतिम दृश्यों में प्रभावित किया है। फिल्म में हीरो के दोस्त के रूप में जॉनी लीवर के पुत्र जेसी लीवर भी हैं, जो चेहरे और एक्टिंग से अपने पिता की याद दिलाते हैं।

फिल्म के डायरेक्टर चिराग रूपरेल की यह बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म है पर आपको पूरी फिल्म में ऐसा ऐहसास नहीं होगा कि वह डायरेक्शन में नए हैं। उनका सधा हुआ डायरेक्शन फिल्म को बोर नहीं होने देता है। हालांकि फिल्म के फर्स्ट हाफ को थोड़ा और मजबूत करने की गुंजाइश थी। फिल्म के संगीत को और बेहतर किए जाने की जरूरत थी लेकिन इसका एक गीत सनकी फिल्म की सिचुएशन के अनुसार बड़ा प्रभावी बन पड़ा है। फिल्म के कुछ संवाद भी आपको याद रह जाते हैं। इंटेंस और थ्रिल मूवी में भी कई जगह पे कॉमेडी क्रिएट हो जाती है। फिल्म के एक सीन में फिल्म का हीरो साहिल मेहरा अपने दोस्त से एक डायलॉग बोलता है - "लोग कहते हैं कि देश में लड़कियां असुरक्षित हैं, लेकिन सच तो यह है कि लड़के भी कुछ खास सुरक्षित नहीं हैं.." 

अमरीश पुरी के प्रशंसकों को यह फिल्म उस महान खलनायक की भी याद दिलाएगी। दरअसल फिल्म के एक सीन में वर्धन पुरी कबूतरों को दाना खिलाते हुए 'आओ.. आओ..' कहते हैं। यह सीन दर्शको को 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के खेतों में खड़े अमरीश पुरी की याद दिलाता है। फिल्म के क्रेडिट में आदित्य चोपड़ा का भी शुक्रिया अदा किया गया है, शायद इसी सीन की वजह से या फिर यह कि वर्धन ने यशराज फिल्म्स की कई मूवीज में एडी के रूप में काम किया है। बहरहाल वर्धन पूरी ने अपनी डेब्यू फिल्म से अपनी एक्टिंग के टैलेंट को सिद्ध कर दिया है। यदि आप रोमांटिक, सस्पेंस थ्रिलर,साइको थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।