Posted on 06 Feb, 2020 08:10 pm

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एक बेहतरीन सिचुएशनल कॉमेडी है फिल्म

फिल्म समीक्षा, फिल्म: यहाँ सभी ज्ञानी हैं, कलाकार: नीरज सूद, अतुल श्रीवास्तव और अपूर्वा अरोड़ा, निर्देशक: अनंत नारायण त्रिपाठी, अवधि : 115 मिनट, सेंसर सर्टिफिकेट : यू, रेटिंग्स तीन स्टार्स।

बॉलीवुड में पिछले कुछ वर्षों में कहानियों के चयन को लेकर कई बदलाव आए हैं। अब बड़े शहरों के लार्जर देन लाईफ किरदारों और ऐसे प्लॉट को नहीं चुना जाता बल्कि छोटे शहरों के मिडिल क्लास किरदारों को ही स्क्रीन पे पेश किया जा रहा है दर्शक भी ऐसी कहानियों और ऐसे चरित्रों से जुड़ जाते हैं। यही वजह है कि इन दिनों छोटे शहरों की कहानियाँ कही जा रही है. इस सप्ताह रिलीज़ हुई फिल्म 'यहाँ सभी ज्ञानी है' भी कानपुर बेस्ड स्टोरी है। डायरेक्टर अनंत नारायण त्रिपाठी की इस फिल्म में नीरज सूद, अतुल श्रीवास्तव और अपूर्वा अरोड़ा जैसे लोकप्रिय चेहरे अहम किरदारों में हैं.

इस फिल्म की कहानी पप्पू और उसकी डिस्फ़ंक्शनल फ़ैमिली की है. घर बेच बेच कर खाने के बाद पप्पू और उस के परिवार की हालत बदतर होती जाती है. एक दिन पप्पू के मन में विरासत में बची अब एकमात्र संपत्ति को भी बेच देने का ख़्याल आता है. मगर तभी उनकी दिवंगत अम्माजी उनके सपने में आकर उन्हें सताने लगती है. कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब एक दिन वह अपने पारिवारिक पंडित के पास जाते हैं, तो यहां पप्पू को बताया जाता है कि उनके घर में गड़ा हुआ धन है. इस खबर से उनका पूरा परिवार खुशी से झूम उठता है. करोड़पति बनने के ख़्याल से वह संपत्ति से जुड़े तमाम ऑफ़र को ठुकरा देता है. इसी बीच पप्पू की बेटी गोल्डी का रिश्ता राकेश के साथ तय हो जाता है.मगर लड़के का बाप दहेज की मांग कर पप्पू को एक बड़ी मुश्किल में डाल देता है. एक मोड़ पे पप्पू और उनके परिवार को ऐसा लगने लगता है कि अम्माजी की आत्मा गोल्डी में आ गयी है, इससे भी काफी हास्य दृश्य क्रिएट किए गए हैं। शादी की तारीख़ करीब आने, उधार वापस मांगनेवालों का तांता लग जाने, रियल एस्टेट की कीमत गिर जाने और गड़ा हुआ खजाना नहीं मिलने की वजह से पप्पू अजीब सी सिचुएशन में घिर जाते हैं। क्लाइमेक्स में फिल्म भागम भाग वाले अंदाज में समाप्त होती है। इसे एक सिचुएशनल कॉमेडी कहा जा सकता है, जिसमें एक्टर्स ने कमाल का काम किया है।

फिल्म में किरदारों के अनुसार ही अदाकारों की कास्टिंग की गई है. अतुल श्रीवास्तव ने फिल्म में पप्पू की भूमिका नेचुरल ढंग से अदा की है. 'स्त्री', 'लुका छुपी', 'बजरंगी भाईजान' और 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके अतुल श्रीवास्तव ने कानपुर की स्थानीय भाषा भलीभांति बोली है। कॉमेडी सीन में भी उनकी गंभीरता दर्शकों को हंसा देती है। फिल्म में दूसरा अहम किरदार है पप्पू के साला लड्डू का रोल, जिसे नीरज सूद ने बखूबी निभाया हैं जिन्होंने 'बैंड बाजा बारात' और 'पति पत्नी और वो' जैसी फिल्मो में अहम किरदार निभाये हैं. अल्टीरियर विज़न प्रोडक्शन्स प्राइवेट लिमिटेड और फ़्यूचर फ़िल्म्स के बैनर तले बनी फ़िल्म के निर्माता हैं सिद्धार्थ शर्मा और इसे को-प्रोड्यूस किया है ज्योति शर्मा ने. फिल्म देखते समय एहसास होता है कि इस फिल्म की यूएसपी इसके डायलॉग और इसके फनी सीन्स हैं। दर्शक कानपुर की खड़ी बोली को खूब एन्जॉय करेंगे. इस फिल्म को पूरी फैमिली एकसाथ बैठकर देख सकती है. फिल्म का बेक ग्राउंड संगीत कहानी से मेल खाता है. इस फ़िल्म की लोकेशन भी कहानी के मुताबिक रखी गई है और कानपुर, उत्तर प्रदेश का माहौल आम दर्शकों को कहानी से कनेक्ट करता है।

बहुत दिनों बाद एक सिचुएशनल कॉमेडी देखना अद्भुत अनुभव रहा। फिल्म में बीच बीच में हॉरर एलिमेंट भी डाले गए हैं। फिल्म अंत में अंध विश्वास के खिलाफ एक मैसेज भी देती प्रतीत होती है। फिल्म अनंत नारायण त्रिपाठी की एक अच्छी कोशिश कही जा सकती है। बतौर निर्देशक पहली फिल्म से ही उन्होंने एक बेहतर लेखक निर्देशक की संभावनाएं जगा दी है। रेटिंग्स तीन स्टार्स।