Posted on 18 Oct, 2019 11:20 am

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फिल्म समीक्षा : खेल में राजनीति पर बेहतरीन सिनेमा है

फिल्म किरकेट - बिहार के अपमान से सम्मान तक', निर्माता आर. के. जालान, सोनू झा, विशाल तिवारी और सह-निर्माता यूसुफ़ शेख़, निर्देशक योगेंद्र सिंह, कलाकार कीर्ति आज़ाद, विशाल तिवारी, सोनू झा, सोनम छाबड़ा, देव सिंह, अजय उपाध्याय, क्रिकेटर मनिंदर सिंह, मनोज प्रभाकर, अतुल वासन , अवधि : 132 मिनट, सेंसर  : U / A, रेटिंग्स साढ़े तीन स्टार्स. इस सप्ताह रिलीज़ हुई फिल्म 'किरकेट' में बिहार क्रिकेट की दयनीय दशा का बखूबी चित्रण किया गया है, साथ ही यह फिल्म कीर्ति आज़ाद के संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी है। इसे कीर्ति आज़ाद की बायोपिक भी कह सकते हैं जिसमें फैक्ट और फिक्शन का मिश्रण किया गया है।

भारत के लिए क्रिकेट में वर्ल्ड कप हासिल करने वाली 83 टीम के अहम खिलाडी रहे कीर्ति आजाद पर यह फिल्म 'किरकेट' बनाई गई है। योगेंद्र सिंह के निर्देशन में बनी इस फिल्म में खुद कीर्ति आज़ाद ने अभिनय भी किया हैं। हालाँकि लगान सहित कई फिल्मे क्रिकेट पर बनी हैं मगर यह फिल्म थोड़ी अलग है। क्या आप जानते हैं कि बिहार के पास पहले बीसीसीआई की मेम्बरशिप नहीं थी. २०१६ में बिहार को बीसीसीआई की सदस्यता मिली. बिहार के रहने वाले कीर्ति आज़ाद वह पहले आदमी थे जिन्होंने बिहार को बीसीसीआई की सदस्यता दिलवाने के लिए लड़ाई शुरू की थी.लगभग दस वर्षों की यह लंबी लड़ाई पूर्व क्रिकेटर और राजनेता कीर्ति आजाद ने लड़ी। यह फिल्म उसी अहम मुद्दे और खेल में सियासत पर बेस्ड है।

इस फ़िल्म का निर्माण येन मूवीज़ ने ए स्क्वेयर प्रोडक्शन्स, धर्मराज फ़िल्म्स और जेकेएम फ़िल्म्स के साथ मिलकर किया है. कीर्ति आज़ाद ने अपने आप को ही प्ले किया है मगर यह आसान नहीं था और कहा जा सकता है कि उन्होंने अपना रोल बखूबी अदा किया। विशाल तिवारी ने भी एक क्रिकेटर की भूमिका में जान डाल दी है। फिल्म की स्टोरी और स्क्रीनप्ले बेहतर लिखा हुआ है इसलिए कुछ सीन देखते हुए आपकी आँखों में कई बार आंसू भी आ जाएंगे। सोनम छाबड़ा ने फिल्म में एक जर्नलिस्ट का रोल बखूबी प्ले किया है. फ़िल्म में कई नये चेहरों को भी मौका दिया गया है।

फिल्म 'किरकेट' में बिहार क्रिकेट की दयनीय हालत और वहां के क्रिकेटरों को राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं दिये जाने संबंधी गंभीर विषय को उठाया गया है. जब बिहार को दो हिस्सों में बांटा गया और एक नया राज्य झारखण्ड बना तो उस के बाद बिहार के खिलाड़ियों का उनके राज्य और जाति की वजह से बहुत अपमान हुआ. किरकेट फ़िल्म उस दर्द और स्टेडियम के बाहर के खेल और राजनीतिक दांवपेंच को दिखाती है. संभवतः ऐसा पहली बार हुआ है कि सत्य घटनाओं पर आधारित इस फ़िल्म में बिहार में क्रिकेट और खिलाडियों की दयनीय हालत के पीछे की राजनीति को दर्शाया गया है. फिल्म में दो सिचुएशनल गाने भी हैं जो इसकी थीम के अनुसार हैं। फिल्म के लेखक, निर्देशक और निर्माता ने एक बेहतर फिल्म दर्शकों तक पहुंचाने की अच्छी कोशिश की है। इस फिल्म को रेटिंग्स साढ़े तीन स्टार्स दी जा सकती है।